ग़जल - अनिरुद्ध कुमार
Oct 1, 2024, 23:21 IST
बेवफाई हँसें इस कदर आजकल।
रो रहीं हैं खुशी दर-ब-दर आजकल।
आदमी-आदमी से लगें है ख़फा,
देख उगले जहर किस कदर आजकल।
नेक नीयत कि कितनी लगे है कमी,
हर किसी में दिखे एक डर आजकल।
कौन कैसे किसी पर भरोसा करें,
जल रहा है यहाँ हर जिगर आजकल।
दर्द अपना छिपा आदमी जी रहा,
लोग पूछे बता क्या खबर आजकल।
अब हँसी भी किसी को गवारा नहीं,
देखता सर उठा हर नजर आजकल।
आज शोहरत कमाना चलन बन गया,
लोग 'अनि' को दिखाते शहर आजकल।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड