ग़ज़ल - अनिरुद्ध कुमार

 

घटी घटना जहाँ अंजान होगा,

बड़ी मजबूर हर इंसान होगा।

चला घरसे लिए अरमान लाखों,

नहीं जानें खड़ा तूफान होगा।

निगाहें देख ना पायीं नजारा,

गया जो भी बड़ी नादान होगा।

गजब इस जिंदगी ने खेल खेला,

सफर में आदमी बेजान होगा।

जिधर देंखें तड़पते लोग बेदम,

इस तरह आदमी हलकान होगा।

तलाशे क्या बता मंजिल यहाँ पे,

थका हारा जहां अरमान होगा।

कराहे दिल बयां कैसे करे 'अनि',

इस कदर हाल मेहरबान होगा।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड