ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Updated: Aug 31, 2024, 22:51 IST
चाँद विष को निगलता है बात सच्ची मान लो।
रोज सूरज पिघलता है बात सच्ची मान लो ।
आदतें मेरी किसी के प्यार की मुहताज थी ,
वो मुखौटे बदलता है बात सच्ची मान लो ।
इस शहर में आदमी की शक्ल धुंधला आइना,
साफ दिखना सफलता है बात सच्ची मान लो ।
दिल जिसे हर बात में हँसने कि आदत थी कभी ,
आज रोकर बहलता है बात सच्ची मान लो ।
भूख से घायल भिखारी हिंदु मुस्लिम हो गए ,
देख कर दिल दहलता है बात सच्ची मान लो ।
अब हलाला पाप है ये है मुनादी शहर में ,
मौलवी क्यों बिचलता है बात सच्ची मान लो ।
मोमिता जैसा न हो इस बात पर भी ध्यान दो ,
खून "हलधर" उबलता है बात सच्ची मान लो ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून