ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 

मोम माँ का है ज़िगर तो बाप भी चट्टान है ।

माँ हवा की लोरियां तो बाप ही तूफान है ।।

ढाल माँ संतान की तो बाप भी कृपाण है ,

पाठशाला मात है तो बाप ही इम्तहान है ।

बाप का दिल नारियल सा सख़्त ऊपर से दिखे ,

रस भरा अंतस में जिसके पापड़ी मिष्ठान है ।

माँ सिखाती है सलीका प्यार का व्यवहार का ,

हार में भी जीत खोजे बाप वो इंसान है ।

जब कभी वहसी हवायें छेड़ती औलाद को ,

बाप को उस वक्त मानो मौत का फरमान है ।

डाँटने से बाप के सजती सँवरती जिंदगी ,

मात ममता चांदनी तो बाप भी दिनमान है ।

जब निराशा बालकों की रोकने लगती डगर,

मान "हलधर" बाप को ही आश का  प्रतिमान है ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून