गीतिका - मधु शुक्ला
Sep 3, 2024, 22:39 IST
निरर्थक कर्म में अपना न कोई पल बिताऊँ मैं,
वतन के हेतु अपनापन, समर्पण नित जुटाऊँ मैं।
किया सर्वस्य न्यौछावर बिना संकोच लाखों ने,
हुई तब प्राप्त आजादी यही सबको पढ़ाऊँ मैं ।
मनुजता धर्म से बढ़कर न कोई धर्म होता है,
जगत को प्रीति दुखियों की दुआओं से सिखाऊँ मैं।
नहीं आशीष सम कोई जगत में रत्न हो सकता,
बुजुर्गों से मिले धन का मिलन सबसे कराऊँ मैं।
नहीं है शत्रु मन जैसा हमारा दूसरा कोई,
मिला जो ज्ञान अनुभव से उसी को बाँट जाऊँ मैं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश