गीतिका - मधु शुकला 

 

श्रद्धा बिना कभी भी, मत श्राद्ध आप करना ,

तर्पण करो अगर तो, श्रद्धा जरूर रखना।

जो कर रहे दिखावा, आशीष वे न पाते,

इस बात को मनन कर, अच्छी तरह समझना।

परलोक जा बसे जो, वे प्रेम चाहते हैं,

उनके चरण कमल तक, श्रद्धा सहित पहुँचना।

हम राह जो चुनेंगे, संतति वही चुनेगी,

निज हेतु चाहिए जो, उस पथ सदैव चलना।

खुशियाँ रखें सुरक्षित, संस्कार और संस्कृति,

देकर इन्हें बढ़ावा, हर वक्त आप हँसना।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश