गंगा स्नान का पर्व है गंगा दशहरा - राकेश अचल

 

Vivratidarpan.com - गंगा हमारे लिए केवल एक नदी नहीं है बल्कि संस्कृति का एक जीवंत प्रतीक है । हम गंगा का पुत्र होने में अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं । गंगा की सौगंध खाते हैं,अपनी सच्चाई को प्रमाणित करने के लिए गंगाजल उठाते है, पाप निवारण के लिए गंगा स्नान करते हैं और जब कोई बड़ा काम सम्पन्न  करने में कामयाब हो जाते हैं तो राहत की सांस लेते हुए कहते हैं -' चलिए हमने तो गंगा नहा ली। '

गंगा के बारे में हर भारतीय जानता है। पूरब का हो ,चाहे पश्चिम का,उत्तर का हो या दक्षिण का,सबके लिए गंगा का महत्व है ।  ये बात अलग है कि सबकी गंगा अलग-अलग है। गंगा दरअसल प्रयाग या हरिद्वार में ही नहीं बहती,बल्कि हर व्यक्ति के मन में बहती है ।

ईश्वर के वजूद को लेकर अक्सर मेरे मन में प्रश्न रहते हैं किन्तु गंगा को लेकर मेरे मन में कभी कोई दुविधा नहीं रही ।  मैंने जब से होश सम्हाला है गंगा को विभिन्न रूपों में देखा है ।  गंगा के प्रति अपने पूर्वजों के मन में अगाध श्रद्धा  देखी है। हम भारतीयों में से बहुत से आज भी किसी क़ानून से,किसी अदालत से भले ही न डरते हों लेकिन गंगा से डरते हैं। उनका डर सम्मान की वजह से है ।  हर भारतीय आज भी गंगा को पाप-नाशिनी मानता है ,पतित-पावन मानता ह, और ये मान्यता कोई एक दिन में  नहीं बनी ।  ये सदियों,युगों और कल्पों  के बाद बनी है। हर भारतीय के घर में गंगा मौजूद  मिलेगी । शीशी में ,कंटेनर में या फिर पीतल के ढ़क्कन वाले लोटे गंगाजली में।आखिरी वक्त में सभी को मोक्ष पाने के लिए गंगाजल की दरकार होती है ,भले  ही  उसने  जीवन  में कभी  गंगा स्नान  किया हो या न किया हो । 

भगवान शिव को किसी ने नहीं देखा,भगीरथ को किसी ने नहीं देखा लेकिन गंगा को सबने देखा है ।  सबको गंगावतरण की पौराणिक कथा का ज्ञान है ।  सब मानते हैं  कि यदि रघुवंशी भगीरथ हठ न करते तो गंगा भूलोक में शायद न आती ।  शिव यदि गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने का साहस न दिखाते तो गंगा धरती पर या तो आती ही नहीं और यदि आ भी जाती तो समूची सृष्टि को अपने आवेग के साथ बहा ले जाती । गंगा दुनिया के किसी दूसरे  देश में नहीं है। अमेरिका में नहीं ,चीन में नहीं ,जापान में नहीं ,रूस में नहीं। गंगा सिर्फ भारत में है और हम शान  से गर्व से कहते हैं कि  -' हम उस देश कि वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है । यानि गंगा हमारा आइडेंटिटी कार्ड है ,परिचय  पत्र  है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां के नागरिक अपने परिचय के तौर पर अपने  देश की किसी नदी का इस्तेमाल करते हैं।

चूंकि 16  जून को गंगा दशहरा है ,इसलिए मैं आपके सामने  गंगा -पुराण लेकर बैठ गया। वरना किसे  फुरसत है गंगा पर बात करने की। गंगा को लेकर हम आम भारतीय ही नहीं बल्कि हमारी सरकारें भी बहुत संवेदनशील दिखाई देतीं हैं लेकिन असल में होती नहीं हैं । वे दुनिया के पाप धोने वाली गंगा के शुद्धिकरण और उसके पुनर्जीवन के लिए प्रोजेक्ट तो बना लेते हैं किन्तु उसे भी सियासत के  रंग में रंग देते है।  भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा देते हैं।

  हम गंगा को पूजते  हैं लेकिन उसकी  फ़िक्र  नहीं करते। हमें गंगा के प्रति फिक्रमंद  होने के लिए उन देशों से सीखना होगा जिनके पास गंगा  तो नहीं है लेकिन उनकी नदियाँ गंगा से सौ गुना  ज्यादा  स्वच्छ  हैं। विदेशी अपनी नदियों  के लिए किसी सरकार पर निर्भर नहीं होते । वे ये काम खुद करते हैं ,लेकिन हम ये सब नहीं करते ।  हम गंगा दशहरे  पर गंगा को पूजेंगे,उसकी आरती उतारेंगे ,दान-पुण्य करेंगे  लेकिन उसकी कोख को गंदगी से भर आएंगे।

हमारी नब्बे साल की दादी फूलकुंवर अनपढ़ थीं  लेकिन जानतीं थीं  कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस दिन गंगा जी की पूजा, गंगाजल से स्नान जरुर करना चाहिए। मान्यता है इससे व्यक्ति के कई जन्मों के पाप धुल जाते है। वे गांव के पास बहने वाली बेतवा  को ही गंगा मानकर  उसमें  डुबकी  लगा  लेतीं  थी।उनके मायके के पास भी गंगा नहीं थी,वहां जमुना थी । वे उसे भी गंगा मानतीं थीं । हमारे पास भी गंगा नहीं बल्कि चंबल है । हम चंबल को ही अपनी गंगा मानते हैं। गंगा को बचाने  का मतलब हर नदी को बचाने से होना  चाहिए  तब तो गंगा को पूजने  का,उसमें नहाने  का कोई अर्थ  सार्थक  हो सकता  है ।

 हमारे राजनैतिक दलों और नेताओं ने तो चुनाव कराकर गंगा नहा ली ,लेकिन गंगा का जिक्र एक बार  भी नहीं किया।    लेकिन आप तो  सोचिये । अपनी  गंगा की सोचियेगा।आप गंगा दशहरा के दिन तुलसी के पत्तों को गंगाजल से धोकर , फिर इन्हें एक लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख कर अपनी  दरिद्रता दूर करने और घर में लक्ष्मी रोकने के फेर में पड़े या न पड़ें। तुलसी में जल अर्पित कर श्री तुलसी स्तोत्रम्‌ का पाठ करें या न करें ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला गंगा की सेहत पर । 

भले ही गंगा जू या  मां गंगा धरती पर सागर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष देने के लिए आई थी ,लेकिन वे देश के करोड़ों  लोगों को जीवन भी दिलातीं  है, मां गंगा अपना काम बखूबी कर रही हैं बस आप भी उसे मैला और प्रदूषित न करें तथा उसे दूषित करने वालों का सजगता और सक्रियता से विरोध करें तभी सही मायने में गंगा दशहरा का पर्व सार्थक हो पाएगा।(विभूति फीचर्स)