दुनिया और दुनियादारी - सुनील गुप्ता

 

मेरी दुनिया

है बहुत छोटी सी

जब चाहूँ जाकर घूम आऊँ  !

है मन बगिया ही मेरी दुनिया......,

बस रमा रहूँ और इसमें खो जाऊँ !!1!!

मन दुनिया

है बड़ी सुंदर सी

यहाँ जी भरकर आनंद पाऊँ  !

चलूँ परवाज़ भरता मन व्योम पे....,

और चहुँ ओर खुशियाँ लूटाता बाँटता फिरूँ !!2!!

मेरी बगिया

चले ख़ूब चहके महके

प्रेम प्यार बरसाए जीवन में चलूँ  !

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं....,

बाज़ार से गुज़रूँ, पर कभी कुछ ना खरीदूँ !!3!!

मन बगिया

खिले चले हर्षाए सरसाए

हरेक पल मुस्कुराए गाता चलूँ  !

है मेरी दुनिया स्वप्निल सपनों की दुनिया.....,

सदैव यहाँ पे जीवंत जीवन जीए चलूँ !!4!!

मेरी दुनिया

और ये दुनियादारी

है मुझसे अलग थलग और विलग !

नित रहूँ खोजता सदा स्वयं में स्वयं को.....,

और अपनी विशिष्ट पहचान बनाए चलूँ  !!5!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान