पर्दे के मगरूर - डॉ. सत्यवान सौरभ
Apr 28, 2024, 22:57 IST
कुछ लोगों के उम्रभर, नहीं बदलते ख्याल।
राहें सीधी हों भले, चलते टेढ़ी चाल।।
सीखा मैंने देर से, सहकर लाखों चोट।
लोग कौन से हैं खरे, और कहाँ है खोट।।
मैं कौवा ही खुश रहूँ, मेरी खुद औकात।
तू तोते-सा पिंजरे, कहता उनकी बात।।
‘सौरभ’ मेरी गलतियां, जग में हैं मशहूर।
फ़िक्र स्वयं की कीजिये, पर्दे के मगरूर।।
घर में पड़ी दरार पर, करो मुकम्मल गौर।
वरना कोई झाँक कर, भर देगा कुछ और।।
मतलब के रिश्ते जुड़े, कब देते बलिदान।
वक्त पड़े पर टूटते, शोक न कर नादान।।
उनका क्या विश्वास अब, उनसे क्या हो बात।
‘सौरभ’ अपने खून से, कर बैठे जो घात।।
कहाँ प्रेम की डोर अब, कहाँ मिलन का सार।
परिजन ही दुश्मन हुए, छुप-छुप करे प्रहार।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर,
हिसार (हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570