मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 

राष्ट्रहित में नित नवल नव चेतना

साकार हो,

हर हृदय में देश के हित प्रेम का

संचार हो।

छोड़ कर सब द्वेष मन में एकता का

भाव हो,

मैं नहीं,हम सब बढ़े इस भाव का

विस्तार हो।

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तोड़ कर अनुबंध सब, उषा लरजती

आ गई,

लालिमा मुख पर लिए,प्रिय मिलन

के हित आ गई।

उद्वेग तो थमता नहीं था मिलन के

अतिरेक का,

रश्मि झालर के तले उषा चहकती

आ गई ।

 डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड