प्रेम का आशय न पूछो - अनुराधा पाण्डेय

 

प्रेम का आशय न पूछो ।

मैं बता सकती न कुछ भी ।

मात्र इतना ज्ञात मुझको ,

तुम नहीं तो मैं नहीं हूँ।

मैं न जानूँ नीति क्या है ,

योग क्या आराधना क्या ?

मोह क्या या त्याग क्या है,

वासना क्या साधना क्या ?

कह रही है पर विरह में..

अश्रु की बरसात मुझको ,

तुम नहीं तो मैं नहीं हूँ।

दूर रहकर नित्य तुमसे ,

दंश दिन देता निरंतर ।

हो गया है वेदना का ,

चेतना पर भार गुरुतर ।

नाग-सी फुंफकार कर नित....

डँस रही है रात मुझको,

तुम नहीं तो मैं नहीं हूँ।

एक क्षण भी छवि तुम्हारी,

दूर होती है न दृग से ।

प्रश्न मरुथल में भटकते ,

पूछते हो क्लांत मृग से ।

बिद्ध करती द्वार आ नित,

याद की बारात मुझको,

तुम नहीं तो मैं नहीं हूँ।

- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली