दोहे - डॉ. सत्यवान सौरभ
सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश।
जुगनू की बारात से, गायब है अब जोश।।
अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान।
बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान।।
अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल।
बूढा पीपल है कहाँ, गई कहां चौपाल।।
गलियां सभी उदास हैं, पनघट हैं सब मौन।
शहर गए उस गाँव को, वापस लाये कौन।।
पद-पैसे की आड़ में, बिकने लगा विधान।
राजनीति में घुस गए, अपराधी-शैतान।।
नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।
संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव।।
जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार।
खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार।।
हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज।
रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे हैं आज।।
योगी भोगी हो गए, संत चले बाजार।
अबलाएं मठ लोक से, रह-रह करे पुकार।।
दफ्तर,थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ।।
- डॉ. सत्यवान सौरभ 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,
बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,