दल सारे दलदल होइहै - हरी राम यादव

 

यहि चुनाव के मौसम मा,

     नेताजी गजबै भागि रहे ।

यहि दल से वहि दल मा,

    बरखा कै मछरी लागि रहे।

केहू कहै आत्मा जागि उठी,

    केहू विचार का दागि रहै।

ऐ मां कै ममता भूलि गए,

    डाइन से जीवन मांगि रहे ।

कल तक देत रहे जे का गारी,

     और सबसे भ्रष्ट बताइ रहे ।

गले मा अंगौछा डारि कै ओकै,

    धाइ के गले लिपटाय रहे ।

चरण बंदना झुकि झुकि कइके,

     वनहू अब सौ गुण बताइ रहे।

अंगुलिमाल जेस ह्रदय परिवर्तन,

    नेताजी अपने अंदर लाइ रहे।।

दल सारे दलदल होइगै,

   बस केवल आवाजाही मा ।

रहिगा न कउनव नीति नियम,

    सिद्धांत चला गा राही मा।

अपना भ्रष्टाचारी है सच्चा,

     दूसरे कै नाम बड़ी उगाही मा।

आचार विचार लइगा भ्रष्टाचार,

    देश चलै परदेशी गवाही मा।।

- हरी राम यादव, अयोध्या , उत्तर प्रदेश

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