दोहे - मधु शुक्ला

 

इंतजार  वसुधा  करे,  कहे  एक  ही  बात।

बरसो घन अति शीघ्र तुम, धूप जलाये गात।।

बरषे   मेघा   झूमकर,  धरती  हुई  निहाल।

लगा चमकने ओज से,भारत माँ का भाल।।

नदी, सरोवर  भर  गये,  बुझी  खेत  की  प्यास।

जागी हलधर के हृदय, उचित फसल की आस।।

वृक्षों  की  शोभा  बढ़ी,  हर्षी  भूमि  अतीव।

चहके खग पाये खुशी ,जलचर थलचर जीव।।

तृप्त हुए जल श्रोत सब, मिटी समस्या नीर।

लहरें  गुंजन  कर  रहीं,  रत्नाकर  के  तीर।।

सावन भादों में अगर, हो अच्छी बरसात।

वसुंधरा चहके  हँसे, रहे प्रफुल्लित गात।।

मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश