भ्रमित मायावी संसार - सुनील गुप्ता
Nov 1, 2024, 12:37 IST
( 1 ) भ्रमित
मायावी संसार में,
पग-पग पे धोखे, खाए चलते !
और पसरी चहुँओर मृग मरिचिका से.,
चलें हम यहाँ, इससे बचते-बचाते !!
( 2 ) मायावी
इस दुनिया के,
हम सभी हैं, सिद्धहस्त खिलाड़ी !
और चलें करते नित अभिनय यहाँ पर...,
पाएं जीविकोपार्जन, वास्ते दिहाड़ी !!
( 3 ) सांसारिक
चक्र व्यूह से,
हम सभी निकलना, बाहर चाहें !
पर, फँसे-जकडें हैं हम यहाँ पे...,
और चाहकर भी बाहर, आ न सकें !!
( 4 ) मिथ्या
है सांसारिक ज्ञान,
जो चले करता, मतिभ्रम यहाँ पे !
आओ, अपरिभाष्य असार अमूर्त से बचते.,
इस जीवन की क्षणभंगुरता को समझें !!
( 5 ) आत्मशक्ति
का दोहन करते,
चढ़ाएं श्रीप्रभु को, अभिषिक्त वस्तुएं !
और चलें श्रीहरि का संकीर्तन करते...,
भ्रमित मायावी संसार से, तर जाएं !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान