भ्रमित मायावी संसार - सुनील गुप्ता

 

 ( 1 ) भ्रमित

मायावी संसार में,

पग-पग पे धोखे, खाए चलते !

और पसरी चहुँओर मृग मरिचिका से.,

चलें हम यहाँ, इससे बचते-बचाते  !!

( 2 ) मायावी

इस दुनिया के,

हम सभी हैं, सिद्धहस्त खिलाड़ी  !

और चलें करते नित अभिनय यहाँ पर...,

पाएं जीविकोपार्जन, वास्ते दिहाड़ी  !!

( 3 ) सांसारिक

चक्र व्यूह से,

हम सभी निकलना, बाहर चाहें  !

पर, फँसे-जकडें हैं हम यहाँ पे...,

और चाहकर भी बाहर, आ न सकें !!

( 4 ) मिथ्या

है सांसारिक ज्ञान,

जो चले करता, मतिभ्रम यहाँ पे  !

आओ, अपरिभाष्य असार अमूर्त से बचते.,

इस जीवन की क्षणभंगुरता को समझें !!

( 5 ) आत्मशक्ति

का दोहन करते,

चढ़ाएं श्रीप्रभु को, अभिषिक्त वस्तुएं  !

और चलें श्रीहरि का संकीर्तन करते...,

भ्रमित मायावी संसार से, तर जाएं !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान