बादल - रेखा मित्तल
Jul 19, 2023, 23:37 IST
आज बादल कुछ ऐसे बरसे,
मानो बरसों से दफन पडे,
मन के एहसासों के माफिक,
स्नेहिल स्पर्श मिलते ही उमड़ पड़े।
भिगो दिया तन और मन को,
मानो अनकहा सा कह रहे हो,
ज्यों मन की गागर भर जाने पर,
मनोभावों का लावा फूट पड़ा हो।
तन शीतल मन शीतल,
तपती धरा का,भीगता अंतर्मन,
बरसते बादल व्यक्त करते व्यथा,
मानो कुछ मन की, कुछ तन की,
कुछ तृप्त, कुछ अतृप्त संवेदनाएं,
व्यक्त हो रही नभ और धरा की,
दिशाएं भी गुंजित हो बनी साक्षी
राह निहारे जलधि,उन्मुक्त तटिनी की।
- रेखा मित्तल, चंडीगढ़