कोरा कागज - मधु शुक्ला
Jan 10, 2024, 23:54 IST
कोरा कागज मन के भीतर, आस लगाये बैठा है,
त्यागेगा चंचलता मन यह, स्वप्न सजाये बैठा है।
स्वार्थ, द्वेष से दूरी रख मन, अपनायेगा अपनापन,
उम्मीदों का कोरा कागज, दीप जलाये बैठा है।
निंदा रस के सेवन से बच, राम नाम गुण गायेगा,
मन लायेगा शुचिता को वह, नैन बिछाये बैठा है।
मन के भीतर कोरा कागज, माँग करे संस्कारों की,
अपनी संस्कृति हेतु सुधा का, घट छलकाये बैठा है।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश