शरद पूर्णिमा की रात - अशोक कुमार यादव

 

आसमान सजी है तारों की लड़ी से,

रहस्यमय चन्द्रमा की सोलह कलाएँ।

वृंदावन में कान्हा ने रासलीला रचाई,

नाच रही गोपियाँ बनकर अप्सराएँ।।

चाँदनी, मणि की आभा बिखेर रही,

श्वेत हीरक धूमिल है इसके समक्ष।

साधक, संयमी भाव से व्रत करता,

स्वर्णिम सिन्धुजा प्रतिमा है प्रत्यक्ष।।

कौमुदी किरणें अमृत की वर्षा करती,

निशीथ में महालक्ष्मी विचरती संसार।

कौन मनुष्य जाग रहा धरा पर अभी,

वर, अभय और वैभव दूँगी उपहार।।

मांगलिक कार्य, गीत गाते हुए मगन,

खीर से भोग लगाता मुझे अद्वितीय।

पूजा से खुश करने वाले सेवक को,

लोक में समृद्धि, परलोक में सद्गति।।

- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़