अजस्त्र बहते मन मोती - सुनील गुप्ता

 

मिलें

' अजस्त्र बहते मन मोती ',

जब लगाऊँ डुबकी गहरे अंतर्मन में  !

और समेट लाऊँ नायाब गौहर हीरे ...,

जो भरदें खुशियाँ तन मन जीवन में !!1!!

खिलें

तन-मन जीवन बगिया ,

जब स्वयं से करूँ मुलाकात यहाँ पे  !

और चलूँ बाँटता प्रेम आनंद प्यार ....,

नित फूटें मन में नव कोंपलें हज़ार !!2!!

नीले

गगन की छाँव में ,

नित भरता चलूँ ऊँची परवाज़  !

और मिलें जो भी यहाँ मित्र सगे-संबंधी.,

उन संग करूँ खुशी से किल्लोल आवाज़ !!3!!

पीले

पीले फूल देख मुस्काऊं ,

तरंगित उमंगित तबियत हो जाए  !

और चलूँ छेड़ता राग मल्हार हर्षाए .,

अब चला जीवन,आए बसंत खिलखिलाए!!4!!

हौले

हौले मन अजस्त्र सागर ,

नवीन रूप में आगे बढ़ता चले लुभाए  !

और विचार श्रृंखलाएं ढलके गीत काव्य में.,

मन को स्वांत: सुखाय का अहसास कराए !!5!!

- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान