ग़ज़ल - विनोद निराश
Jan 6, 2023, 22:21 IST
अलविदा कैसे कह दूँ जाने के लिए,
बहुत कुछ खोया तुझे पाने के लिए।
मेरे लिए तो मुझसे बढ़कर है आप,
गैर होंगे तो होगें ज़माने के लिए।
कुछ तो आबरू रखी उन्होंने मेरी,
आये वो हमदर्दी दिखाने के लिए।
चलते-चलते हाले-दिल पूछ बैठे,
फकत अपनापन जताने के लिए।
कल चर्चा था हो गया वो गैर का,
दोस्त भी आये जलाने के लिए।
मैं चाहकर भी उन्हें भूला न पाया,
जो ज़िद्द पे अड़े है भूलाने के लिए।
अब न हो शायद मुलाक़ात कभी,
खुद आये बात ये बताने के लिए।
ये साल भी बड़ा बेगैरत सा गुजरा,
निराश का जर्फ़ आजमाने के लिए।
- विनोद निराश, देहरादून
जर्फ़ - सब्र / सहनशीलता