गीतिका - ऋतुबाला रस्तोगी
Jul 17, 2022, 22:49 IST
मन की बातें मन में रखकर , मन को पत्थर कर लेते हैं।
रोते हैं हँसने का नाटक, हम भी अक्सर कर लेते हैं।
कतरा कतरा दर्द भरा है,डूब डूब जाओगे तुम भी,
कर लेते हैं दिल को दरिया आँख समन्दर कर लेते हैं।
बीते लम्हे जीते रहते भुला नहीं पाते हैं ग़म को,
घाव कहाँ भरते उनके जो,यादें नश्तर कर लेते हैं।
मीठे सपनों वाली इनमें, कहाँ उगा करती हैं फसलें,
खारे आँसू पीते पीते आँखें बंजर कर लेते हैं।
जोड़ घटाना करते करते,सीख लिया है गुणा भाग सब,
मुश्किल होती हल करने में फिर भी बेहतर कर लेते हैं।
-ऋतुबाला रस्तोगी, चाँदपुर बिजनौर