गणपति प्रभाती - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 

आदि देव प्रभु को कहें, सर्वप्रथम लें नाम।

लंबोदर को पूज कर, करते बाकी काम।।

गौरी सुत हर वर्ष घर, खुशियाँ लाते संग।

उत्सव में तन मन रँगे, भरती नवल उमंग।।

पूजन हो जिनका पहले वह आदि गणेश सदा कहलाते।

मूषक वाहन है जिनका बस मोदक ही उनको मन भाते।

विघ्न हरें सब कष्ट टरें सुखदायक मंगलमूर्ति कहाते।

भक्त करें गुणगान विनायक को मन से नित शीश नवाते।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश