गीतिका - मधु शुक्ला

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शत्रु से मित्रता हम बढाने लगे,

गीत सद्भाव के नित्य गाने लगे।

प्रीति का पथ लुभाने लगा जब हमें,

वेदना से जगत को बचाने लगे।

ज्ञात था स्वार्थ के वे बड़े भक्त हैं,

नव सृजन हेतु गीता सुनाने लगे।

दोष गुण रज समाहित रखे तन कलश,

मेल ही जिंदगी हम बताने लगे।

प्रीति से प्रेम पहचान है हिन्द की,

बात गह कर सखा मुस्कराने लगे।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश