उत्तराखंड में 200 उर्दू अनुवादकों की भर्ती में भी खेल

 | 
uk

देहरादून। उत्तराखंड में इस समय यूकेएसएससी पेपर लीक से लेकर विधानसभा और कई अन्य विभागों में फर्जी तरीके से हुई नियुक्यिों और घपले-घोटालों और भ्रष्टाचार को लेकर हो हल्ला मचा हुआ है। फर्जी नियुक्यिों को लेकर आये दिन हो रहे नए-नए खुलासों से सरकार बैकफुट है। विपक्ष प्रदेशभर में पुतला दहन के साथ सरकार के मंत्रियों से इस्तीफे की मांग कर रहा है। इसी बीच आरटीआई के जरिए एक बड़ा खुलासा पुलिस और आबकारी महकमें में हुई उर्दू अनुवादकों की भर्ती को लेकर हुआ है।

150 से लेकर 200 उर्दू अनुवादकों नियम विरुद्व कर रहे हैं नौकरी
सोशल एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने कहा है कि उत्तराखंड में नौकरियों का खेल राज्य गठन से पहले ही शुरू हो गया था। उन्होंने कहा कि प्रदेश में मौजूदा समय में 150 से लेकर 200 उर्दू अनुवादकों को नियम विरुद्ध नौकरी पर रखा गया है। इन अनुवादकों को नौकरी से निकालने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और डीजीपी अशोक कुमार समेत विभिन्न महकमों के प्रमुखों से कई पत्र लिखे, लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। एडवोकेट विकेश सिंह नेगी ने कहा कि सबसे ज्यादा उर्दू अनुवादक पुलिस महकमें में कार्यरत हैं जिन पर कार्रवाई के लिए उन्होंने डीजीपी अशोक कुमार को पत्र लिखा लेकिन इन पर क्यों कार्रवाई नहीं हुई यह समझ से परे हैं। तत्कालीन सरकार ने भी कार्रवाई के नाम पर चुप्पी साध ली। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से उन्होंने पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच व इस पूरे मामले में दाषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।

आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश नेगी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि 1995 में तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने यूपी में उर्दू अनुवादकों की भर्ती की थी। यह भर्ती भी एक साल के तदर्थ आधार पर एक साल के लिए की थी। इसके तहत 28 फरवरी 1996 को उनकी नियुक्ति स्वतः ही समाप्त हो जानी थी। अहम बात यह है कि यह नियुक्ति गढ़वाल, कुमाऊं और बुंदेलखंड के लिए नहीं थी। इसके बावजूद गढ़वाल-कुमाऊं में भी उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति कर दी गयी। इनकी तैनाती आबकारी, पुलिस, सचिवालय, मंडल और जिला कार्यालयों समेत कई विभागों मे की गयी है। एडवोकेट नेगी के अनुसार विभागों की मिलीभगत के कारण नियमानुसार इनकी सेवा समाप्त हो जानी चाहिए थी, लेकिन इन्हें सेवा पर जारी रखा गया और कई कर्मचारियों को बकायदा वेतन वृद्धि के साथ ही प्रमोशन भी दिये गये हैं।

एडवोकेट विकेश नेगी के अनुसार इस मामले में उर्दू अनुवादक हाईकोर्ट गये थे लेकिन कोर्ट का स्थगन आदेश भी समाप्त हो चुका है, लेकिन ये कर्मचारी प्रदेश के लिए बोझ बने हुए हैं। इस संबंध में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और डीजीपी अशोक कुमार से भी शिकायत की है। इसके बावजूद अब तक इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। नियमानुसार इनकी सेवा स्वतः समाप्त हो गयी है। ऐसे में उर्दू अनुवादकों को नौकरी से बर्खास्त किया जाना चाहिए।