राष्ट्रपति ने किया 2001.94 करोड़ रूपये की 09 विकास योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास

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Vivratidarpan.com देहरादून- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु गुरुवार को उत्तराखंड में अपने प्रथम दो दिवसीय प्रवास पर देहरादून पहुंची। इस मौके पर राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु ने कहा कि देव-भूमि, तपोभूमि और वीर-भूमि उत्तराखंड में आना, मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। हिमालय को महाकवि कालिदास ने ‘देवात्मा’ कहा है। राष्ट्रपति के रूप में, हिमालय के आंगन, उत्तराखंड में, आप सब के अतिथि-सत्कार का उपहार प्राप्त करके, मैं स्वयं को कृतार्थ मानती हूं। राष्ट्रपति ने अभिनंदन-समारोह के उत्साह-पूर्ण आयोजन के लिए राज्यपाल, मुख्यमंत्री और उत्तराखंडवासियों को धन्यवाद दिया।
राष्ट्रपति ने विभिन्न विकास परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इन परियोजनाओं से लोगों के लिए जन-सुविधाएं बढ़ेंगी। उन्होंने इन परियोजनाओं के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार की सराहना की। उन्होंने कहा कि राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के सुव्यवस्थित मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के ऊर्जावान नेतृत्व में, उत्तराखण्ड समग्र विकास के पथ पर अग्रसर है। राज्य के विकास की इस यात्रा में उत्तराखंड के परिश्रमी और प्रतिभाशाली निवासियों का महत्वपूर्ण योगदान है।
इस दौरान  राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी परंपरा में नगाधिराज हिमालय के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को देवताओं का वंशज माना गया है। इस प्रकार उत्तराखंड के भाई-बहन एक दिव्य परंपरा के वाहक हैं। आप सबके बीच आकर मैं विशेष प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूं। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और यहां के लोगों के प्रेमपूर्ण व्यवहार ने स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी से लेकर प्रकृति के सुकुमार कवि, सुमित्रानंदन पंत को मंत्रमुग्ध किया था। इस प्राकृतिक सुंदरता को बचाते हुए ही विकास के मार्ग पर हमें आगे बढ़ना है। साथ ही राष्ट्रपति ने कहा कि भारत माता की धरती के बहुत बड़े भाग को निर्मित और सिंचित करने वाली नदी-माताओं के स्रोत उत्तराखंड में हैं। हिमालय और उत्तराखंड भारत-वासियों की अंतरात्मा में बसे हुए हैं। हमारे ऋषि-मुनि ज्ञान की तलाश में हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में आश्रय लेते रहे हैं। यह लोक-मान्यता है कि लक्ष्मण जी के उपचार के लिए इसी क्षेत्र के द्रोण-पर्वत को ‘संजीवनी बूटी’ सहित हनुमान जी ले कर गए थे। इस तरह आध्यात्मिक शांति और शारीरिक उपचार दोनों ही दृष्टियों से उत्तराखंड कल्याण का स्रोत रहा है।