जिंदगी - क्षमा कौशिक

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तुम रुके, न मैं थमी,

जिंदगी चलती रही,

धीमे धीमे ही सही,

जिंदगी बढ़ती रही।

थी नहीं ख्वाहिश बड़ी,

आरजू नन्ही सी थी,

एक घरौंदा प्रेम का हो,

आस इतनी मन में थी।

दूर थी मंजिल बड़ी,

नाव भी डग मग सी थी,

प्रेम की पतवार थी,

थामे जिसे चलती रही।

आस्था  श्रीराम पर थी,

कर्म पर विश्वास था,

प्रिय जनों का साथ था,

जिंदगी निभती रही।

मुश्किलों ने भी थकाया,

आंख भी भरती रही,

धूप में ,कभी छांव में,

जिंदगी सधती रही।

- डा० क्षमा कौशिक,

देहरादून , उत्तराखंड