जिंदगी - भूपेन्द्र राघव
May 27, 2024, 22:13 IST
| मैंने तेरा क्या बिगाड़ा जिंदगी,
मौत का कैसा अखाड़ा जिंदगी।
मुस्कराहट छटपटाकर मर गयी,
किस तरह तूने पछाड़ा जिंदगी।
धड़कनें भी चीख तक सुन न सकीं,
इस कदर हो गयी नगाड़ा जिंदगी।
जिसके काँधे सर रखा रोया ज़रा,
उसने ही झटका लताड़ा जिंदगी।
मैं उलझता ही गया जितना पढ़ा,
है अजब उल्टा पहाड़ा जिंदगी।
सीधे चलने की जुगत में जानिये,
कर रही घुटनों को आड़ा जिंदगी।
कौडियों का दाम भी मिलता नहीं,
एकदम जैसे कबाड़ा जिंदगी।
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा. उत्तर प्रदेश