जीत मिली तुम्हें - नीलिमा शर्मा

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जीत मिली है तुम्हें हुआ है, गर्वित ह्रदय हमारा।

आज मगन मन झूम रहा है, लेकर नाम तुम्हारा ।।

तुम विकास के रथ को,सबसे आगे लेकर जाओ।

बनो सूर्य के जैसे हे! नर , तम को दूर भगाओ।।

अर्जुन बनकर लक्ष्य बेधना, रहता साध्य तुम्हारा।

हारा हुआ खिलाड़ी बनना, तुमको कहाँ गँवारा।।

तेरी इसी अदा पर हमने, अपना सब कुछ वारा।

जीत मिली है तुम्हें हुआ है, गर्वित ह्रदय हमारा।।

राहों की बाधाओं से तुम, पीछे कहाँ हटे हो।

दृढ़ता के दामन को थामे, बढ़ते रहे डटे हो।।

धाराओं को मोड़ा तुमने, पर्वत को ललकारा।

सागर जैसी गहराई को, मन में तुमने धारा ।।

सारी दुनिया देख रही है, रौशन हुआ सितारा।

जीत मिली है तुम्हें हुआ है, गर्वित ह्रदय हमारा।।

अपनी बाँहों के बूते पर, रखकर सदा भरोसा।

काम किया पूरी हिम्मत से,मन को नहीं मसोसा।।

आधी आबादी कहती है, तुमने हमें उबारा।

माँ-बेटी- बहनों को तुमसे, मिलता रहा सहारा।

मेरे गीतों में झंकृत है, देखो प्यार तुम्हारा।।

जीत मिली है तुम्हें हुआ है, गर्वित ह्रदय हमारा।।

देते सदा चुनौती दुश्मन, उसको तुम स्वीकारो।

हैं शिशुपाल सरीखे सारे, चक्र सुदर्शन मारो।।

कर दो वारे-न्यारे सारे,बनकर तुम अंगारा।

भस्मीभूत करो हर दानव की मायावी कारा।।

है विश्वास कर्म पर जिसको, वह जीते जग सारा।

जीत मिली है तुम्हें हुआ है, गर्वित ह्रदय हमारा।।

- डा० नीलिमा मिश्रा , प्रयागराज, उत्तर प्रदेश