तुम - प्रीति यादव

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तपती धूप में शीतल छाँव से तुम,

किसी वीराने में बसे सुंदर गाँव से तुम!

सुरहीन वीणा की मधुर तान से तुम,

नीरव वन में कोयल की मीठी गान से तुम!

छुपा हो जैसे किसी सीप में मोती,

चंद्रमा सी वो मनभावन शीतल ज्योति!

नयनों से छलकती असीम प्रीति,

जैसे हो तुम मेरी कोई नयी काव्य कृति I

शब्द सीमित और भाव हैं कम,

प्रेम वर्णन तुम्हारा लगे है मुझे कम I

दीप जला खुशियों के,हर लिए सारे तम

लगता जैसे अब अनन्त तक साथ हैं तुम हम I

- प्रीति यादव, इंदौर, मध्यप्रदेश