तुम काव्य-हृदय बनकर - यशोदा नैलवाल
हे शब्द - विश्व के सृजनहार........कवितामय मेरा चित कर दो,
तुम काव्य-हृदय बनकर ईश्वर कविता को फिर जीवित कर दो।
कविता,व्याकुल होती हर क्षण,
पूरा अस्तित्व....... बिखरता है।
तुकबंदी नोंक-झोंक वाला,
अभिनय हर रोज...निखरता है।
एक बार पुनः पावनतम रच ....मुझको फिर से गर्वित कर दो,
तुम काव्य-हृदय बनकर ईश्वर कविता को फिर जीवित कर दो।
तुलसी की चौपाई.........पावन,
मीरा की निर्मल.......भाषा थी।
मैं सूरदास के....नेह-नयन की,
दृष्टिमान.........अभिलाषा थी।
एक बार लेखनी को गंगा के जल से.......अभिसिंचित कर दो,
तुम काव्य-हृदय बनकर ईश्वर कविता को फिर जीवित कर दो।
हिंदी जीवन का उपवन है,
कविता इसकी फुलवारी है।
अक्षर सुमनों के जैसे हैं,
पूरी वसुधा आभारी है।
एक बार काव्य को वर देकर मन कलुष तुम विसर्जित कर दो,
तुम काव्य-हृदय बनकर ईश्वर कविता को फिर जीवित कर दो।
- यशोदा नैलवाल, दिल्ली