तू ही मेरा श्रृंगार - सविता सिंह ​​​​​​​

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संस्कार, सदाचार

विचार, आचार

तू ही मेरा श्रृंगार।

अलंकार, उपहार

आकार निराकार.

सब तेरे ही है प्रकार

नदी ,पोखर ताल तलैया

तू ही सबकी खेवईया

शाखा, वल्लरी, द्रुम, लता

प्रकृति की सुंदर छटा

वर्षा ओस बादल घटा।

खग मृग बाल गोपाल

राम केशव नंदलाल।

धूप छांव अंबर धरा

यह सब तो तेरे हैं रूप,

तू ना हो तो बोले क्या,

तू ना हो तो सोचे क्या,

तू ना हो तो लिखे क्या

तू जननी तू गरीयसी,

तू सबकी है प्रेयसी

तू हो तो हम सब निहाल,

तू है मेरे देश की भाल,

तू गंगा तू कालिंदी,

मेरे हिंद की तू हिंदी।

मेरे हिंद की तू हिंदी।

तू है तो भाव है

सब तेरा ही प्रभाव है।

तू अगर ना हो तो बस

अभाव ही अभाव है।

तू सब की है परिभाषा

तुझसे है सबको आशा

तू सबकी है राष्ट्रभाषा

तू सबकी है राष्ट्र भाषा

- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर