मेरी कलम से - यशोदा नैलवाल

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हर  परिंदा   देर  तक  उड़ता  नहीं  है.

चुक गया जो वक्त, फिर मुड़ता नहीं है।

टूट  जाता  है अगर  कुछ भी कभी तो,

फिर  दुबारा  उस  तरह जुड़ता नहीं है।.

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बांधते दिल, कि दिल के दरीचे नयन.

जीतना जग  कहां  से हैं सीखे नयन।

शंख या कि कमल, तीर - तलवार से,

क्या बताएं कि किसके सरीखे नयन।

- यशोदा नैलवाल, दिल्ली