यादें - प्रदीप सहारे

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वह गया ही था,

बड़ी उम्मीद  लेकर ।

पूछेंगा हाल ,

बडे दिन बाद,

मिलने का लेकर ।

उसे क्या पता था ,

अब दिल का ,

हाल हुआ  हैं ,

बद से बद्तर ।

ना पूछा हाल,

ना किया,

खुशी का दीदार ।

अपनी ही दौलत का,

रख दिया  सामने,

लगाकर बाजार ।

बता रहा था,

खूब बढ़कर खूबियां,

हमें लग रहीं थी,

हमारी कमियां ।

उसकी उपलब्धियां,

उसकी कहानियां,

कर रहीं थी उसे तराबोर ।

अब हमें,

लगने लगा था बोर ।

लेकर गये थे ,

कुछ यादों का जख़ीरा ।

कुछ पल करेंगे हरा,

लेकिन,

अब हालात हैं जनाब ,

यादों के,

बद से बद्तर ,

मायूस होकर निकले,

उसके घर ।

- प्रदीप सहारे, नागपुर , महाराष्ट्र