औरतें - रश्मि मृदुलिका

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पानी की तरह होती है औरतें,

रंगहीन, गंधहीन, आकार हीन,

निराकार परमब्रह्म की तरह,

जैसी भावना ,वैसा रूप धर लेती है|

कोमल मन से कोमलांगी दिखती है|

तीक्ष्ण नजरों से कठोर हो जाती है|

मातृत्व की धारा सी प्रवाहित होती है|

प्रेम में झरना बन झुक जाती है|

सहनशीलता में पयोधि हो जाती है|

रिश्तों के हर रंग को ओढ़ लेती है|

मानो, रंगों से भरी तुलिका बन जाती है|

कुद्ध हो जाए, बाढ़ सी उनफती है|

शांत सरोवर सी तृप्त करती है|

जीवन से भरी सदानीरा बहती है|

खारेपन में भी प्राणहीन नहीं है|

सौंदर्य का प्रतिरूप सरिता है|

भावुकता की ओस बन बिखरती है|

उपेक्षा से जमी बर्फ हो जाती है|

गीता की वाणी, श्लोकों की स्याही,

कवियों की प्रेरणा प्रेयसी प्रतिमा सी,

निर्झरिणी, तडाग, सागर,स्रोतों सी,

खुशियों की खुशबू से महके सुमन सी,

निराकार- साकार की परिभाषा सी,

हर रूप हर रंग हर गंध में समाहित,

पानी सी ये औरतें जीवन का पर्याय है|

जल ही जीवन है शायद इन्ही से बना है|

- रश्मि मृदुलिका ,देहरादून, उत्तराखण्ड