पत्नी चालीसा - सुनील गुप्ता
(1) पत्नी कहो, स्त्री या भार्या
(2) सदा चले, पति संग-संग बेगम !
(3) अर्धांगिनी सहधर्मिणी गृहस्वामिनी ..,
(4) जन्म-जन्मांतर तक, बने रहे प्रेम !!
(5) लुगाई बीवी, जोरू घरवाली
(6) पति कमाए, घर चलाये 'वामा' !
(7) और लाई, 'दारा' घर में खुशहाली..,
(8) कहे 'वामांगिनी', पुरुष हमेशा माना !!
(9) धर्मपत्नी गृहणी, संगिनी शोभा
(10) वधू बिन नहीं, कुछ काम सधे !
(11) वनिता श्रीमती, रमणी वल्लभा.,
(12) घर बनाए और दुःख दर्द बाँटते चले !!
(13) औरत कलत्र, कांता जनाना
(14) सभी रूप, 'हृदयश्वेरी' के भाएं !
(15) 'सहगामिनी' जब बन आए 'दुलहन'..,
(16) तो, विस्मय से, पति चित्त हो जाए !!
(17) ओ अंकशायिनी, गृहलक्ष्मी प्राणप्रिया
(18) बनी तुम हो मेरे, जीवन की धुरी !
(19) छोड़ चले न जाना,'सहचरी' मुझे अकेले.,
(20) वरना, कसम देता हूँ तुझको प्रिय 'बन्नी' !!
(21) ओ मेरी भाग्य विधाता रूपवती
(22) तेरे आने से, जीवन में बहारें आईं !
(23) था वरना, ये मन सूना रेगिस्तान सरिखा ..,
(24) तुझसे ही मिल, ये जिंदगी संवर पाई !!
(25) ऐ नारी, तेरी महिमा अति न्यारी
(26) तू है 'घरलक्ष्मी' ,'अन्नपूर्णा' स्वरूपा !
(27) दिखें तुझमें ही, 'देवी' के नवरूप...,
(28) और तू ही कात्यायनी कालरात्रि दुर्गा !!
(29) प्रिय 'परिणीता' करके तुझसे परिणय
(30) हमारे प्रणय संबंध, होते चले प्रगाड़ !
(31) 'वामांगना' ऐ मेरी 'डार्लिंग' 'सजनी' ...,
(32) तुझसे जोड़के रिश्ता, वृहद बना परिवार !!
(33) तिय तिरिया दयिरा सौभाग्यवती
(34) हूँ मैं बड़ा ही, यहाँ पे खुशक़िस्मती !
(35) चला जीवन-दरिया पार करते सुगमता संग .,
(36) और पता ही न चला, उमरिया कैसे बीती !!
(37) प्रेमिका माशूक़, दिलरुबा प्रिय
(38) मिला गठजोड़, बखूबी तुमसे यहाँ !
(39) बनी तुम मेरे, 'ख्वाबों की शहज़ादी' ..,
(40) और मेरे काव्य की अप्रतिम, 'प्रतिभा' !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान