जब 400 पर भारी पड़े 12 भारतीय सैनिक - हरी राम यादव

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vivratidarpan.com - देश बँटवारे की त्रासदी से जूझ रहा था लेकिन पाकिस्तान के हुक्मरान के दिमाग में एक और फितरत चल रही थी और वह थी धोखे से कश्मीर पर कब्ज़ा जमाना । वह यह भलीभांति जानते थे कि भारत से आमने सामने कि लड़ाई में वह कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकते, इसलिए  उन्होंने अपनी सेना के जवानों 22 अक्टूबर 1947 को कबाइलियोँ  के  बेष में कश्मीर में भेजा। बँटवारे के बाद उहापोह कि स्थिति में रह रहे राजा हरिसिंह ने जब स्थिति को नियंत्रण से बाहर  देखा तब उन्होंने भारत सरकार से सहायता मांगी ।  भारत सरकार ने उनके सामने भारत में विलय की शर्त रखी जिस पर उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 हस्ताक्षर कर दिया। विलय पत्र पर हस्ताक्षर के पश्चात भारत सरकार हरकत में आ गई और भारतीय सेना को विमान के द्वारा श्रीनगर के हवाई अड्डे पर उतारा।

भारत पाकिस्तान के बीच चल रहे इस युद्ध में 1 राजपूत रेजिमेंट जम्मू कश्मीर के एक अग्रिम मोर्चे पर तैनात थी । जमादार बासुदेव अपनी यूनिट के एक दस्ते का नेतृत्व कर रहे थे। 06 फरवरी 1948 को 12 जवानों की उनकी इस टुकड़ी पर पाकिस्तानी सेना  ने 400 जवानों के भारी संख्या बल के साथ इनकी पोस्ट पर पूरी ताकत से 05 बार हमला किया। लेकिन 1 राजपूत रेजिमेंट के वीरों ने हर बार दुश्मन के हमलों को बड़ी बहादुरी से विफल कर दिया। 12 जवानों द्वारा की गई जबाबी कार्यवाही में पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। दोनों ओर से हो रही इस भीषण लड़ाई  में जमादार बासुदेव लगातार अपनी टुकड़ी का मनोबल बढ़ाते रहे। वह यह जानते थे कि दुश्मन की ताकत उनसे 40 गुना ज्यादा है फिर भी वह चट्टान की तरह अपने सैनिकों के साथ डटे रहे।

दोनों ओर से हो रही भीषण गोलीबारी के बीच पाकिस्तानी सेना के दो सैनिक छुपकर उनके बंकर तक पहुंचने में कामयाब हो गये और पीछे की तरफ से उनके बंकर पर हैंड ग्रेनेड  फेंकने लगे। यह देखते ही जमादार बासुदेव  का खून खौल उठा लेकिन उन्होंने ठंढे दिमाग से काम लिया । अपनी जान की परवाह न करते हुए वह धीरे से अपने बंकर से बाहर निकले और पाकिस्तानी सैनिकों के ऊपर ताबड़तोड़  हैंड ग्रेनेड फेंकने लगे। इसी बीच  मौका मिलते ही उन्होंने दोनों को अपनी संगीन से मौत के घाट उतार  दिया। जमादार बासुदेव के इस साहस को देखकर उनके जवानों के अंदर और जोश आ गया । हालांकि इस भीषण लड़ाई में जमादार बासुदेव के साथ बहुत कम जवान बचे थे। फिर भी वे तब तक लड़ते रहे जब तक कि शत्रु मार या खदेड़ न दिया गया।

जमादार बासुदेव ने इस युध्द में अपूर्व वीरता, निडरता, नेतृत्व क्षमता तथा कर्तव्य निष्ठा का परिचय दिया। उनकी इस वीरता और साहस के लिए उन्हें 06 फरवरी 1948 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। बाद में वे पदोन्नत होकर सूबेदार मेजर बने और ऑनरेरी कप्तान के पद से सेवानिवृत्त  हुए ।

जमादार बासुदेव का जन्म 30 अप्रैल 1918 को राजस्थान के गांव परमन्द्रा जनपद भरतपुर में श्रीमती धर्म कौर और श्री याद राम के यहाँ  हुआ था। बाद में इनका परिवार मथुरा जिले के राकौली गांव में आकर बस गया। यह 30 अप्रैल 1937 को  भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और अपना प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 1 राजपूत रेजिमेंट (अब 4 गार्डस) में पदस्थ हुए। सेना से  सेवानिवृत्त होने के पश्चात यह अपने गाँव राकौली में अपने परिवार के साथ रहने लगे थे । मार्च 1998 में 80 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया । इनके परिवार में इनकी दो बेटियां तथा एक बेटा और उनका परिवार है ।

जमादार बासुदेव जनपद मथुरा के अकेले वीर चक्र विजेता हैं लेकिन इस दृढनिश्चयी वीर की वीरता को याद रखने के लिए स्ठानीय प्रशासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया है । इनके परिवार द्वारा इनकी याद को जीवंत रखने के लिए एक समाधि का निर्माण करवाया गया है । इनके परिवार का कहना है कि यदि सरकार बरसाना से राकौली को जाने वाली सड़क पर एक शौर्य द्वार का निर्माण करवा दे तो राकौली गाँव के लोग गर्व का अनुभव करेंगे और आसपास के गाँव के युवा इनकी वीरता से प्रेरणा लेकर देश की रक्षा के लिए उन्मुख होंगे ।

- हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश  फोन नंबर - 7087815074