बारिश का इंतजार - सुनील गुप्ता

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अब करते इंतजार जाए रे बीती

दिन रात, सुबह ओ शाम सारी  !

पर, दूर-दूर तक सुनायीं ना दे गर्जना....,

और आती ना दिखी मेघों की सवारी !!1!!

कब से लगा रखी थीं यहां पे आशाएं

और कर रखे थे खेत-खलियान तैयार !

अब तो पड़ने लगी हैं धूमिल आशाएं....,

और चिंताग्रस्त हुआ जा रहा मन बेक़रार !!2!!

देख सूखी धरती यहां की सारी

हो रहा उम्मीदों पर कुठाराघात  !

कब से कर रखी थी यहां पे तैयारी.....,

पर हुआ वही ढाक का तीन पात  !!3!!

अब तो है बेचैनी का आलम

और नहीं कहीं भी है तनिक आराम   !

चहुँओर पसरा है यहां-वहां मातम.......,

और बारिश का नहीं है कोई पैगाम !!4!!

अब तो तरस-तरस गयीं अँखियाँ

करते बारिश का यहां कबसे इंतजार  !

कैसे होंगी पूरी परिवार की खुशियाँ...,

और कैसे मनाएंगे अब उत्सव त्यौहार !!5!!

अब घिर-घिर आया है घोर संकट

और पीने के पानी के लाले भी पड़ रहे  !

सूख गयीं सब ताल तलैया बावड़ी....,

और पनघट सारे सूने-सूने दिख रहे  !!6!!

नित करता मन प्रार्थना और उम्मीदें

कि, बरस-बरस जाएं आ बदरिया  !

और लहलहा उठे खेत-खलियान फिर से....,

बस, काश सुनलें विनती हे सेठ सांवरिया !!7!!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान