अधूरे किस्से - विनोद निराश
Oct 8, 2023, 22:51 IST
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तन्हा सी इस ज़िंदगी में,
मद्यम हवा के झोखें सरीखे,
अनुरागित हो तुम आये थे कभी,
हंसीं ख्वाब की तरहा।
ख्वाहिशों के हर वर्क को,
लम्हा-दर-लम्हा,
संभाले रखा हमने भी,
तृष्ण ख्याल की तरहा।
मिलते रहे हम - तुम,
इक दास्तां सी बनती गई,
यूं ही दिन-ब-दिन,
अनसुलझे सवाल की तरहा।
फिर देखते-देखते
इश्क़ से लबरेज़,
खूबसूरत ज़िंदगी हो गई,
मुकम्मल किताब की तरहा।
अचानक मुड़ने लगे चाहतों के वर्क,
शायद न पलटने के लिए,
तुम छोड़ गए तन्हा मुझे,
अधूरे हिसाब की तरहा।
एक लम्बी आस के बाद,
निराश मन सोचता रहा,
शायद मुड़े वर्क अब न होगे सीधे,
उस अधूरे जवाब की तरहा।
- विनोद निराश, देहरादून