गाँव — मधु शुक्ला

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मलीनता न पालते  बड़े  महान गाँव हैं,

गहें न स्वार्थ को सहायता प्रधान गाँव हैं।

हरीतिमा जहाँ बसे न छाँव की कमी रहे,

उदारता रखे सुखी न आँख में नमी रहे।

निवास बंधुता करे सभी समान गाँव हैं....।

न भोग लालसा यहाँ निवास सादगी करे,

न मान धर्म का घटे अबीर न्याय का झरे।

सुचारु ढंग से चलें सही विधान गाँव हैं....।

किसान अन्न हेतु खेत में लगे रहें सदा।

करें न खर्च नीतियाँ किफायती गहें सदा।

नवीन युक्ति ढूँढ़ते प्रयोग खान गाँव हैं।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश