घनाद के रुप में हमेशा याद रहेगें विजय अरोरा - डा.मुकेश कबीर

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Vivratidarpan.com - विजय अरोरा इसलिए स्मरणीय हैं क्योंकि उन्होंने महान धारावाहिक रामायण में मेघनाद की भूमिका निभाई दूसरे वे इसलिए भी उल्लेखनीय हैं कि फिल्मों में किस्मत के बिना कुछ नहीं होता चाहे कोई कितनी भी मेहनत कर ले।अक्षय कुमार कहते हैं कि "कोई फिल्म में आना चाहता है तो  सिर्फ टेलेंट और मेहनत के बल पर नहीं आए बल्कि  ज्योतिषी से सलाह लेकर आए"।मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं फिल्म इंडस्ट्री में सैंकड़ों कलाकार रहे जो टैलेंटेड थे मेहनती भी थे फिर भी सफल नहीं हुए विजय अरोरा इसके अच्छे उदाहरण हैं। जिन्होंने सौ फिल्में की लेकिन उन्हें कामयाबी मिली रामायण से जबकि यादों की बारात में  वे इतनी तेजी से उठे थे कि राजेश खन्ना और जितेंद्र भी दहल गए थे मगर फिर उसके बाद विजय कभी नही उठ सके।हालांकि उन्हें काम मिलता रहा पर वे स्टार नहीं बन सके आखिर रामायण से उनको वो मुकाम मिला जो उन्हें सौ फिल्में नहीं दे पाई थी। जबकि  रामायण में उनके पास करने के लिए कुछ खास था नहीं और साथ ही रामायण के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता अरविंद त्रिवेदी के साथ उन्हें।स्क्रीन शेयर भी करना थी मगर फिर भी अरोरा ने अपनी छाप छोड़ी और इंद्रजीत हो गए। उनके द्वारा बोले गए पिता श्री और मरकट शब्द बहुत प्रभावी हुए जबकि  रामायण में पिता श्री सबने बोला लेकिन आवाज में गरज ,आंखों में क्रोध और सीने में सांस भरकर जब विजय अरोरा बोले तो सब फीके हो गए।मेघनाद ने मां से कहा कि "पुत्र का तो एक ही धर्म होता है अपने पिता के लिए प्राण तक दे देना चाहे पिता गलत ही क्यों न हो"।बस इस एक डॉयलॉग ने बता दिया कि मेघनाद विलेन नहीं था और विजय अरोरा हमेशा इसी बात को गर्व से कहते रहे लेकिन दुखद यह कि उनको बड़ा रोल तब  भी नहीं मिला और आखिर में कैंसर से इंद्रजीत  हार गया लेकिन रामायण के कारण विजयअरोरा हमेशा अमर रहेंगे।(विभूति फीचर्स)