मैं लहर तुम्हारी (काव्य संग्रह) में प्रेम, हर्ष-उल्लास, विरह, पीड़ा का अनोखा चित्रण

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vivratidarpancom - लघुकथाकार, हाइकुकार, छंद विशेषज्ञ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' की ऐसी लेखनी है जिनकी प्रशंसा में हम जितने भी शब्द कहेंगे वे पर्याप्त नहीं होंगे। उनकी कई पुस्तकों में से मैं लहर तुम्हारी एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। कविता सदैव उनकी प्रिय विधा रही है , अतएव अपनी कविता में उन्होंने समस्त पारम्पारिक छंदों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। पुस्तकों में लिखी भूमिका सदैव आकर्षित करती है, काम्बोज जी भूमिका में जीवन की वास्तविकता को अद्भुत विचारधारा तथा कई युक्तियों एवं विशेष तथ्यों के साथ ही संप्रेषित करते हैं। संपूर्ण पुस्तक का अध्ययन करने के पश्चात् प्रति क्षण भूमिका में उल्लिखित उनका जीवन-विश्लेषण मस्तिष्क में उदभासित होता रहा । प्रथमतः काम्बोज जी भारतीय संस्कृति,कला-शिल्प, संस्कार एवं इतिहास को लेकर अत्यंत संवेदनशील रहे हैं। यही तत्त्व यथार्थ रूप में उनकी रचनाओं में प्रतिफलित भी होता है।

मैं लहर तुम्हारी काव्य संग्रह में उनकी कविताएँ वर्ष 1976 से लेकर 2022 पर्यंत संगृहीत हैं। प्रत्येक कविता में निजस्व सिद्धांत है एवं भारतीय भावनाओं में मानव चरित्र चित्रित है। ऐसा कोई तथ्य नहीं, जो उपयुक्त बिम्बों में प्रतिपादित न हुआ हो। एक नितांत अनुभवी लेखक को पढ़ना पाठकों तथा समाज के लिए अत्यंत सौभाग्यपूर्ण है।

रामेश्वर जी की निर्भीक लेखनी प्रेम, हर्ष-उल्लास, विरह, पीड़ा, प्रकृति ही नहीं लिखती अपितु कई सामाजिक स्थितियों तथा शासन-तंत्र पर भी उनके स्वातंत्र्य लिये उचित एवं श्रेयस्कर मनोभाव को निश्चित रूप से उकेरती है।

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दिग्भ्रष्ट मानव-समाज के लिए कहा है, पृष्ठ 18 की कविता 'आज आदमी' में -

बहुत बढ़ गया आज आदमी

शोर गली-गली है...

इस कविता में दिया गया बिंब अत्यंत प्रभावी है एवं अधुना मानवीय स्तर निम्नगामी है, यह बिंबित किया गया है।

राजनितिक विषय पर कवि हिमांशु जी अत्यंत मुखर हो कर प्रखरता से लिखते हैं। पृष्ठ 21,23,29 की कविताएँ-'दर्द की जाति' , 'न्याय की नाव' एवं  'इंकलाब' अत्यंत संवेदनशील हैं। इनका कथ्य हृदय को न केवल आंदोलित करता है, अपितु एक नग्न सत्य को सम्मुख रखता है।

मनुष्यता जैसे दैवीय उपादान का महत्व समझाते हुए कविवर ने अपनी पीड़ा को क्षताक्त शब्दों में अभिव्यक्त किया है कि (पृष्ठ 31 की यह मानव, मानव रह पाता कविता में)-

पाण्डव बनने की धुन किसको, कौरव बनना जहाँ सरल है

अमृतपान की प्यास सभी को, पीना रुचिकर किसे गरल है।......

संपूर्ण कविता में व्याप्त संदेश अत्यंत हृदयस्पर्शी है। यह कविता लिखी गई है 1981 में। इस कविता में यह अनुभूत होता है कि कवि का भाव तरुणावस्था में जगत की .. संसार की प्रतिकूल परिस्थितियों को समेटने में प्रयासरत रहा।

कई वास्तविक विषयों पर लिखित कविताएँ पाठकों को नीतिवाद, संघवाद, जातिवाद, तर्कवाद इत्यादि से परे जाकर केवल सरल एवं समस्यारहित जीवन शैली सिखातीं हैं। कोई भी कवि प्रेम की उपेक्षा नहीं कर सकता। प्रेम एवं पीड़ा कविता के प्रथम श्वास होते हैं। अतएव, कविताकार में स्वच्छ शाश्वत प्रेम का निदर्शन देते हुए रामेश्वर जी कहते हैं, उदाहरण स्वरूप पृष्ठ 82,83 एवं 84 से :-

पृष्ठ (10)

जग बरसे जब बन ओला वृष्टि, तुम अमृत बन जाते हो,

उर के अंकुर जब-जब झूलसे, तुम अमृत घन बरसाते हो।

पृष्ठ (14)

पथ तुम्हारा कंटकों का संग में चलना मुझे,

सुमन खिलाते हैं जहाँ तक आँचल तुम्हारा है।

पृष्ठ (18)

मैं तो रहा अकिंचन जग में, कुछ भी क्या दे पाया तुमको,

तुमने तो सातों जन्मों का, मुझको प्यार अमर दे डाला।

इतनी गहराई से भावों के मोतियों को समेटकर कथा-वस्तु का रूपांतर नदी सी कलकल कविता में करना, अत्यंत रमणीय है।

संपूर्ण संग्रह में समस्त कविताओं को आत्मा का स्पर्शन देते हुए पृष्ठ 89 की क्षणिका राजनीति में तिर्यक् उक्ति पढ़कर यह अनुभूत हुआ कि कवि वर्ष 1981 में कितने मननशील रहें होंगे । उन्मुक्त चिंताशक्ति से सम्पन्न कवि समग्र जगत की पीड़ा को कविताधीन करने में सफल हो पाए हैं।  इस लघु कविता का अंश :

राजनीति जब घुप्प अँधेरे में, पहुँची वेश्या के कोठे पर,

बाँह पकड़कर दलाल, उसे नीचे ले आए —

भले आदमियों की जगह यह, यहाँ से जाओ!......

इस कविता में राजनीति कितनी भयावह है, कैसे कूट- कपट से मानव के मूल्यबोध को नष्ट किया है, कैसे परिजनों को शत्रु बनाया है, कैसे विभक्तीकरण से मेरुदंड को ध्वस्त किया है..यह अल्प शब्दों में प्रतिपादित किया है एवं उच्चकोटि के बिम्बों में अपनी अभिव्यक्ति का सुंदर चित्रण किया है,कविश्री रामेश्वर  ने।

यह संग्रह विशेष रूप से संग्रहणीय है। तरुणावस्था से अर्थात् 1976 से 2022 पर्यंत की इस काव्य-यात्रा में मौलिक भावों का न्यायिक एवं वैधिक चिंतन यात्री बन पाठकों के मन को अवश्य काव्य-लहरों को स्पर्श करने को प्रेरित करेगा। विभिन्न विधा में उपयुक्त मानवीय चेतना को उज्जीवित करने में सफल हुए हैं कवि रामेश्वर।

कविश्री ने यह संग्रह सॉनेटियर प्रो. विनीत मोहन औदिच्य  को एवं मुझे (अनिमा दास) समर्पित कर अजस्र आशीर्वाद की वृष्टि की है, इस हेतु मैं उनको हृदयगह्वर से कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ एवं उनकी लेखनी समस्त पीढ़ी का मार्गदर्शक बन श्रेष्ठ साहित्य को विस्तार दें,यह कामना करती हूँ।

मैं लहर तुम्हारी ( काव्य-संग्रह) : - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ,

पृष्ठ संख्या-95,

मूल्य -240, वर्ष: 2022

प्रकाशक - अयन प्रकाशन, जे -19/39, राजपुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली -110059

समीक्षक - अनिमा दास, कटक , उड़ीसा