दो  क़दम - ज्योत्स्ना जोशी

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दो क़दम आगे बढ़ाने के बाद

फिर चार क़दम पीछे लेना

जरुरी हो जाता है,

पहले दो उन बातों के लिए

जिनमें हमारे क़दम और आत्मा

साथ साथ नहीं चलती !

और दूसरे दो इसलिए कि

उम्मीद और नाउम्मीदी का सेतु

बना रहे !

पीड़ा बस इतनी है कि दुनिया महज़

आगे बढ़े हुए दो क़दम ही देख पाती है।

- ज्योत्स्ना जोशी , उत्तरकाशी