मृत्यु से बड़ा सच नहीं - सुनील गुप्ता

(1)"मृत्यु", मृत्यु से बड़ा है कोई सच नहीं
फिर भी क्यों इससे डरते हैं हम !
कहीं भी दूर भाग चलें हम जाएं......,
ये पकड़ के ही लेती आख़िरकार दम !!
(2)"से", सेज सजी जीवन की यहां पर
फिर भी आनंद नहीं ले पाते !
चिंता में लगे रहते हैं कल की.....,
और तिल-तिल यहां मरते चले जाते !!
(3)"बड़ा", बड़ा ही सच है मृत्यु का यहां पर
और हर पल-क्षण जन्म यहां घट रहा !
है समय निश्चित हरेक कार्य का......,
और नियति का क्रम चल ही रहा !!
(4)"सच", सच से कहां तक तू भागेगा रे
आएगा वो तो एक दिन आगे !
चल जीते ज़िन्दगी का हरेक पल.....,
क्यूँ चिंता में घुला जाए यहां पे !!
(5)"नहीं". नहीं कल का वज़ूद है यहां पर
आज अभी जो करना सो कर ले !
है अगले पल का ना कोई ठिकाना....,
बस, इस पल को तू अपना बना ले !!
(6)"मृत्यु से बड़ा है सच नहीं ", कोई
फिर भी स्वयं को मानते हैं अमर !
देखते सामने से जाते हुए लोगों को.......,
पर, इस सच से फेर लेते हैं नज़र !!
(7) मौत को यूँ ही, बदनाम हैं करते
तकलीफ तो ये ज़िन्दगी है देती !
मौत तो आती, चुपचाप चली जाती...,
ये ज़िन्दगी पल-पल है नचाती !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान