त्रिपदा छंद - अनिरुद्ध कुमार

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नर या चाहे नार।

जड़ चेतन साकार।

मनमोहे संसार।

जीते खातिर मार।

हर बातें तकरार।

के मानेला हार।

जीये के दिन चार।

अलग अलग व्यौहार।

सबके चाहत प्यार।

फूल कली कचनार।

मनहर रंग हजार।

अदभुत बा शृंगार।

गजबे रचनाकार।

सुख-दुख के भरमार।

पग-पग लागे धार।

सबके बा दरकार।

केहू ना बेकार।

होला नित जयकार।

सागर झील पहाड़।

जंगल गाछी झाड़।

मालिक के उपहार।

गुण अवगुण आधार।

सब में बा सरकार।

सदगुण से उजियार।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड