वृक्ष हमारे पूजनीय - मणि बेन

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कितना सुंदर धरा ये पावन

प्रकृति का श्रृंगार  है।

झूम झूम कर कोमल कलियां

कुछ करती इज़हार है।

कितनी प्यारी लगती धरती

ईश्वर ने जो बनाई है

खूब सजाई हरियाली से

रच रच धरा सजाई है।

आंचल जिसका नीला अम्बर

पर्वत जिसका भाल है

चन्दा तारे बिंदिया इसके

अद्भुत ये श्रृंगार है

हरियाली को छेड़े रह रह

शीतल पवन बयार है।

झूम झूम कर कोमल कलियां

कुछ करती इज़हार है।

कल कल नदियों से छलकता यौवन

हरियाली से है सबका जीवन

सार खुशी का निहित इसमें

जीवन का ये आधार है

रक्षा करना प्रकृति का

हम सबका अधिकार है

प्रकृति का निश्छल रूप है

वृक्ष ही जीवन सार है।

नव नव कोपल नव पल्लव से

धरती का श्रृंगार किया

लेकिन मानव स्वार्थ में पड़ कर

हरियाली को उजाड़ दिया

अपने हाथों नष्ट किया

अनुपम प्रभु का उपहार है

झूम झूम नव पल्लव करते

खुशियों का इज़हार है

पत्थर का बस शहर बसाया,

काट सभी पेड़ों को गिराया,

सिहर उठा है हृदय सभी का,

कैसा विकट समय ये आया,

क्रुद्ध हुई है धरा हमारी,

अब करती प्रहार है,

चेत जा अब भी री मूर्ख मनु,

बाक़ी अब संहार है।

समझ ना पाए मरम धरा का,

धरती कहे पुकार है,

पर्वत काटा सड़क बनाया,

जंगल काटा शहर बसाया,

सुना नहीं क्या तुमने मानव

प्रकृति की पुकार है

खींच लिया तन का भी आंचल

धरती हुई वेज़ार है

प्रकृति कह रही पुकार

सुन मानव मेरा चीत्कार

दस दस पौधे सभी लगाओ

हरियाली से धरा सजाओं

समझ ले प्रकृति का इशारा

करता बारंबार है

प्राण वायु से रक्षित होगा

वही तो जीवन सार है।

 - मणि बेन द्विवेदी, वाराणसी उत्तर प्रदेश