तुझे मदन ! मैं प्यार जताऊँ? - अनुराधा पाण्डेय

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मुझे मदन ! इतना बतलाओ ,

भ्रमित हुआ यह मन समझाओ ।

पूजन तेरा करूँ मगन या,

तुझे मदन ! मैं प्यार जताऊँ ?

पूजूँ तो पत्थर बन जाते,

मेरे मन को तनिक न भाते ।

चेतनता ही जड़ हो जाती,

मुझे मदन ! हर पल भरमाते ।

सुमन हाथ से गिर-गिर कहते -

वंदन या मनुहार जताऊँ ।

तुझे मदन --

युग बीते हैं थकी अर्चना ,

रंग न लाई कभी साधना ।

बैठे-बैठे आँखें  थिर हैं,

लगता है ज्यों मरी चेतना ।

रोम-रोम चुप कहता अब तो-

वारूँ या अधिकार जताऊँ ?

तुझे मदन ! मैं प्यार जताऊँ ?

पता नहीं जग क्यों पागल है,

मूल काटकर तने सींचता ।

दुश्मन जग है मूर्त देह का,

जीते जी ही प्राण खींचता ।

शून्य देखती जब ये आँखें-

किस पर कह! स्वीकार जताऊँ ?

मुझे मदन ! इतना बतलाओ ,

भ्रमित हमारा मन समझाओ ।

पूजन तेरा करूँ मगन या,

तुझे मदन ! मैं प्यार जताऊँ?

- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली