ये बारिश का मौसम - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
पावस ऋतु जब भी आती है, बादल करते शोर रे।
गर्जन तर्जन रिमझिम रिमझिम, हो वर्षा घनघोर रे।1
वन-उपवन में केकी झूमें, छटा दीखती अति अनुपम।
पत्तों धरती पर बूँदों की, आवाजें बनती सरगम
रंग-बिरंगे पंख पसारे, नर्तन करते मोर रे।2
धरती ओढ़े धानी चूनर, चहुँदिशि हरियाली छायी।
शुष्क पड़ी महिती पर फिर से, नवल चेतना सी आई।
देख हरीतिम सुंदर वसुधा, मन में उठे हिलोर रे।२
तप्त धरा शीतल हो जाती, कूप-सरोवर भर जाते।
विविध रूप जल स्रोतों के तब, उर आनंदित करवाते।
कल-कल ध्वनि सुनकर नदियों की, मन हो भाव विभोर रे।३
गिरती बूँदें पैदा करतीं, पड़-पड़ टन-टन का सरगम।
कभी तीव्र ध्वनि उत्पन्न करें वे, कभी ताल होती मद्धम।
आरोही-अवरोही लय सम, वर्षा धीमी-जोर रे।४
मोर-मोरनी रह-रह बोलें, प्रतिध्वनि लगती अति प्यारी।
वशीभूत हो कर पावस के, करें मिलन की तैयारी।
व्याकुलता स्वर में लगती है, ज्यों ढूढ़ें चितचोर रे।५
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश