वो ढूंढे हैं फायदे - डॉ. सत्यवान 'सौरभ'

 | 
pic

आँखों से पर्दा उठा,

सीख मिली बेजोड़।

वो ढूंढे हैं फायदे,

तू ढूंढें है जोड़।।

ये भी कैसा प्यार है,

ये कैसी है रीत ।

खाया उस थाली करें,

 छेद आज के मीत ।।

अपनों की जड़ खोदते,

होता नहीं मलाल ।

हाथ मिलाकर गैर से,

करते लोग कमाल ।।

क़तर रहे हैं पंख वो,

मेरे ही लो आज ।

सीखे हमसे थे कभी,

भरना जो परवाज़ ।।

बदले आज मुहावरे,

बदल गए सब खेल ।

सांप-नेवले कर रहे,

आपस में अब मेल ।।

जीवन पथ पे जो मिले,

सबका है आभार ।

काँटे, धोखा, दर्द जो,

मुझे दिए उपहार ।।

जब तक था रस बांटता,

होते रहे निहाल ।

खुदगर्जी थोड़ा हुआ,

 मचने लगा बवाल ।।

 - डॉ. सत्यवान 'सौरभ',

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,

बड़वा (सिवानी) भिवानी