है कहानी - अनिरुद्ध कुमार
Apr 17, 2023, 23:32 IST
| 
चार दिन की जिंदगानी, रातदिन की है कहानी,
क्या बुढ़ापा या जवानी, रोज गढ़ती है कहानी।
आदमी कितना गुमानी, रोज रटता नेकनामी,
हर घड़ी करता बयानी, लोग कहतें है कहानी।
ये फ़िजा भी दिल लुभाये, राग छेड़े है तुफानी,
लाल,पीला,रंग मोहें, हर जुबां पर है कहानी।
ये बहारों का पसारा, दूरसे लगती सुहानी,
रंग बदले चाल बदले, हरघड़ी की है कहानी।
देखता'अनि' है नजर से, जिंदगी कितनी सयानी,
हम रहें या ना रहें रब, वक्त कहती है कहानी।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड