सदियों तक महकेगी पंचम दा के संगीत की खुशबू - विनय कुमार तिवारी

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vivratidarpan.com - अपने यार दोस्तों में पंचम दा के नाम से मशहूर राहुल देव बर्मन आज हमारे बीच हैं तो अपने उस संगीत के जरिए, जो सदियों तक संगीत प्रेमियों के हृदय को रोशन रखेगा। अपने जमाने के संगीत सम्राट सचिन देव बर्मन उर्फ एसडी बर्मन के पुत्र राहुल देव बर्मन की इस पुण्य तिथि पर उन्हें हमसे बिछड़े तीस बरस हो गये हैं।

जनवरी 94 की 4 तारीख को बम्बई में पंचम दा के निधन के साथ ही फिल्म संगीत के एक युग का अंत हो गया। राहुल देव बर्मन का जन्म 27 जून 1938 को कलकत्ता में हुआ था। बम्बई में रहकर पिता के सान्निध्य में पंचम दा ने बहुत कुछ सीखा। अपनी लगन और परिश्रम के बल पर ही 18 वर्ष की अल्प आयु में गुरूदत्त की फिल्म प्यासा में पिता का सहायक बनने का गौरव पा लिया था।

प्यासा के गीत की रिकार्डिंग के दौरान गुरूदत्त आरडी बर्मन के काम से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी अगली फिल्म राज के संगीत निर्देशन के लिए आर डी बर्मन से बात कर ली। किंतु पिता एसडी बर्मन चाहते थे कि उनका बेटा संगीत की पूरी शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद ही स्वतंत्र रूप से संगीत के क्षेत्र में कदम रखे। दुर्भाग्यवश गुरूदत्त की यह फिल्म कुछ समय बाद ही बंद हो गयी।

पंचम दा के स्वतंत्र संगीत निर्देशन की प्रथम हिन्दी फिल्म छोटे नवाब (1961) थी। महमूद की छोटे नवाब के बाद आई फिल्म भूत बंगला में भी पंचम दा ने संगीत दिया, इन दोनों फिल्मों ने संगीत के विस्तृत क्षेत्र में इस नवोदित संगीतकार को स्थापित तो किया, किंतु उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर जिस फिल्म ने पहुंचाया वह थी तीसरी मंजिल। इसके संगीत ने चारों ओर धूम मचा दी।

ओ मेरे सोना रे सोना रे... गीत  आज भी चर्चित है। आज भी संगीत पे्रमियों की जुबान पर है। तीसरी मंजिल के अन्य गीत ओ हसीना जुल्फो वाली... दीवाना मुझसा नहीं... तथा आजा आजा मैं हू प्यार तेरा... वर्तमान में भी उतने ही सफल है, जितने उस समय थे। तीसरी मंजिल से मिली सफलता के बाद पंचम दा सफल संगीत की गारंटी माने जाने लगे थे।  इसके बाद आई फिल्में कटी पतंग, हरे रामा- हरे कृष्णा तथा अमर प्रेम के मजबूत संगीत ने आर डी बर्मन को संगीतकारों की अग्रिम पंक्ति में बैठा दिया था।

राहुल देव बर्मन ने पिता की लीक से हटकर संगीत की अलग शैली विकसित की, अपने संगीत में और अधिक सुधार लाने पश्चिमी वाद्य यंत्रों का भी जहां उपयुक्त लगा उपयोग किया।

तीव्र गति से सफलता की ओर बढ़ रहे आरडी बर्मन ने शोले, शान, कारवां, कसमें वादे, प्रेम पुजारी, मेरे जीवन साथी, सीता और गीता, झील के उस पार, बहारों के सपने, आंधी, कुदरत, घर, लव स्टोरी, पड़ोसन, यादों की बारात, दीवार, पुकार, बेताब, सागर, जवानी, आपकी कसम, गुरूदेव आदि फिल्मों में संगीत का वह जादू बिखेरा कि आज भी अच्छे-अच्छों की जुबान पर पंचम दा के संगीत का जादू सवार है।

फिल्म सागर में सागर किनारे दिल ये पुकारे... तथा चेहरा है या चांद खिला है... आज भी गुनगुनाया जाता है।पंचम दा की अंतिम फिल्म 1942 ए लव स्टोरी थी, जिसकी एक काव्यात्मक रचना और मधुर संगीत ने फिल्मी गीतों की परिभाषा ही बदल दी। एक लड़की को देखा तो... ने न जाने कितने रिकार्डों को तोड़ा पर अफसोस कि अपनी अंतिम फिल्म 1942 ए लव स्टोरी की सफलता को अपनी आंखों से देखने के लिए पंचम दा जीवित नहीं रहे।

राहुल देव बर्मन ने अपने संगीत जीवन में लगभग 300 फिल्मों को मधुर संगीत दिया, वहीं जहां आवश्यकता महसूस हुई कुछ गीतों को स्वर भी दिया। उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में भी संगीत दिया था। भारतीय फिल्मों में पंचम दा के योगदान का सम्मान करते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने 1982 में उन्हें लता मंगेशकर पुरस्कार से अलंकृत किया (विनायक फीचर्स)